हिन्दी भाषा के विकास की जब भी बात आती है तब मुझे आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले महान साहित्यकार भारतेंदु युग के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की दो पंक्तियां याद आती हैं- निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल।। उपरोक्त दोहे से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आधुनिक हिन्दी के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपनी भाषा हिन्दी से कितना लगाव था। प्रत्येक भारतवासी का यह कर्तव्य है कि वह अपने मातृ भाषा के प्रति सम्मान का भाव रखते हुए उसके विकास के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे।
हिन्दी हमारी शान है, हमारी पहचान है। हिन्दी विश्व की लगभग ३००० भाषाओं में से एक है। इतना ही नहीं हिन्दी आज की सबसे बड़ी आबादी द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा है।भाषायी सर्वेक्षण के आधार पर दुनिया की आबादी का १८%व्यक्ति इसे समझता है जो कि अन्य भाषाओं को समझने वालों में सबसे अधिक है। हिन्दी को हम भाषा की जननी, साहित्य की गरिमा, जन-जन की भाषा और राष्ट्रभाषा भी कहते हैं ऐसे में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि हिन्दी भविष्य की भाषा है। हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपना बधाई संदेश हिन्दी में प्रसारित करते हैं क्योंकि हिन्दी भाषा अपनत्व का बोध कराती है ,”#जो सुख मां कहने में है वह मम्मी कहने में कहां है।”
एक बात ध्यान देने योग्य है कि अपने शैशव काल से लेकर आज तक इंटरनेट जो सीढियां चढ़ी हैं वह अपने आप में प्रतिमान है लेकिन जितनी प्रसिद्धि हिन्दी भाषा के वेबसाइट्स को मिलती है उतनी किसी और को नहीं मिलती। इसके साथ ही यदि भारत में आप हिन्दी और अंग्रेजी समाचार चैनल की बात करेंगे तो आपको बखूबी पता चल जाएगा कि किस भाषा की चैनल की डिमांड और टी.आर.पी ज्यादा है। भारत में कोई भी वस्तु तब तक नहीं प्रचलित होती जब तक कि उसमें भारतीयता का पुट न सम्मिलित हो। इसलिए हिन्दी भाषा वह पुट है जिसके बिना ख्याति सम्भव नहीं है। इसलिए संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी भाषा की उन्नति में ही हमारी उन्नति है अतः हमारा यही कर्तव्य होना चाहिए कि हिन्दी के प्रति हम उदारवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए इसके प्रचार प्रसार के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहें क्योंकि – जिसको न निज भाषा तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं पशु निरा और मृतक के समान है।। जय हिन्दी जय देवनागरी